This episode currently has no reviews.
Submit ReviewA reading of the Letters for Black Lives translated into Hindi. Written and edited by the Letters For Black Lives Team. Translated by the #Translation-Hindi Team. Read by Aishwarya Bhadouria.
Video available on: Instagram: www.instagram.com/dearasianamericans Facebook: www.facebook.com/dearasianamericans YouTube: www.youtube.com/dearasianamericans
Transcripts of the letter below and also available at: https://lettersforblacklives.com/
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आदरणीय परिवार जन और दोस्तों,
हमें आप सब से एक ज़रूरी बात करनी है |
हो सकता है अभी तक ब्लैक लोग आपके दोस्त या साथी न रहे हों, इसलिए आप उनसे परिचित नहीं हैं, लेकिन हमें ब्लैक लोगों के लिए आज बहुत डर लग रहा है | बचपन से ब्लैक लोग हमारे दोस्त, पड़ोसी, और साथ पढ़ने वाले रहे हैं | इन में से कई लोग रिश्तेदार से कम नहीं है, और हम उनके खिलाफ होने वाले अत्याचारों को और नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते |
तीन हफ्ते पहले, मिनेसोटा में, एक वाइट पुलिस अफ़सर ने जॉर्ज फ्लॉयड (George Floyd) नाम के एक ब्लैक आदमी की जान ले ली | नौ मिनट के लिए, उसने अपने घुटने से जॉर्ज की गर्दन दबा कर उसकी सांस खींच ली | “मैं सांस नहीं ले पा रहा हूँ”, दोहराते-दोहराते जॉर्ज मर गया | मरते वक़्त उसने अपनी माँ को दर्द और पीड़ा-भरी आवाज़ में याद किया, और किसी ने उसकी नहीं सुनी | दो और पुलिस वालों ने फ्लॉयड को कस के पकड़ रखा और एक एशियाई अफ़सर खड़े-खड़े देखता रहा | फ्लॉयड अकेला नहीं है : इसी साल, पुलिस वालों ने इंडिआना के ड्रैसजोन रीड (Dreasjon Reed), फ्लोरिडा के टोनी मक-डेड (Tony McDade), और केंटकी की ब्रीओना टेलर (Breonna Taylor) की भी जानें ले लीं | फरवरी में भी, एक विरत अफ़सर के हाथ बेगुनाह अहमौद आरबेरी (Ahmaud Arbery) की जॉर्जिया में हत्या हुई |
बार बार, नाइंसाफी की जीत हो रही है | सबूत और गवाह होने के बावजूद, ब्लैक लोगों को मारने वाले पुलिस-अफसरों को सज़ा नहीं मिलती, चाहे समाचार में कितनी भी खबर क्यों न मिले | ये ऐसी घटनाएँ हैं जिन्हें हम समाचार पर देख पाए है; सोचिये और कितनी ऐसी घटनाएँ होंगी जो अनदेखी और अनसुनी रह गयी होंगी |
यह हमारे ब्लैक भाइयों, बहनों, और दोस्तों की एक भयानक सच्चाई है, जिस के साथ वे रोज़ जीते हैं; और इसी लिए, आज हमारा बात करना ज़रूरी है |
हम अक्सर यह सोचते हैं कि माइनॉरिटी होते हुए, भेदभाव के बावजूद, हमने भी अमरीका में कामयाबी पायी है, तो वे क्यों नहीं पा सकते? हमें यकीन है की अगर हम सब साथ में काम करें, तो हम समाज की यह गलत फहमी दूर कर सकते हैं | हमको वाइट होने की सुविधा भले न हो, लेकिन हमको ब्लैक न होने का फायदा ज़रूर मिलता है | आम तौर पर, लोग हमें खतरा नहीं समझते | अगर पुलिस हमें सड़क पर रोक भी ले, तो कम-से-कम हमें मरने का डर तो नहीं लगता | हमारे ब्लैक दोस्त इसी डर के साथ रोज़ जीते हैं |
सदियों पहले, ब्लैक लोग अपनी इच्छाओं के खिलाफ, यहाँ ग़ुलामी के लिए लाये गए थे | तब से, वाइट लोगों ने अपने फायदे के लिए उनके समाज, परिवार, और शरीर का इस्तेमाल किया | ग़ुलामी के ख़त्म होने के बाद भी, usa.org/black-history-month/a-brief-history-of-jim-crow">सरकार ने उनको अपनी ज़िंदगी बनाने का हक़ नहीं दिया | वे चुनावों में हिस्सा नहीं ले पाए, पढ़ाई नहीं कर सके, और घर खरीदना भी उनके लिए मना था | आज के ज़माने में भी ऐसी कड़वी सच्चाइयाँ इनकी ज़िंदगी में मौजूद हैं! आज भी पुलिस और अमरीका के कैद-खाने ऐसी बेइंसाफ़ियों को लगातार जारी रखते हैं, जो सदियों पहले हाकिम ग़ुलामों पर रखते थे | उनके ज़ुल्म ख़त्म नहीं हुए; बस उनके ज़ुल्मों का रूप बदला है |
यह सच है कि अमरीका में हम भी भेदभाव और बेरहमी के शिकार रह चुके हैं | आपको शायद 9/11 के बाद वाले हादसे याद होंगे, जब हम जैसे लोगों पर आतंकवादी होने का आरोप लगाया गया था | तब से, हवाई अड्डे और आप्रवासी के अफ़सर हमारे भाई-बहनों को Our-Own-Words-Narratives-of-South-Asian-New-Yorkers-Affected-by-Racial-and-Religious-Profiling.pdf">परेशान भी करते आ रहे हैं और गिरफ्तार भी | 9/11 को हुए 20 साल होने वाले हैं और आज भी हम नफ़रत के शिकार हैं | हमारे मंदिर, मस्जिद, और गुरुद्वारे निगरानी, गुंडा-गिरी और गोलियों के भी निशाने बन चुके हैं | दरअसल यह हिंसा नयी नहीं है | सौ साल पहले, अंग्रेज़ों से बचने के लिए जब हिंदुस्तान से लोग कैलिफ़ोर्निया और वाशिंगटन आये, तब भी उन्होंने पुलिस और दंगों का सामना किया | इन में से कुछ लोगों ने भारत की स्वतंत्रता के लिए इस देश में भी अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ाई जारी रखी, जिस में ब्लैक लोगों ने उनका हाथ थामा | 20 साल बाद, उन्ही-की सिविल राइट्स (Civil Rights) की लड़ाई की बदौलत, अमरीका के अन्यायी क़ानूनों का नाश हुआ | आज उन्हीं की मदद के कारण, इस देश में दक्षिण एशिया (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्री लंका, नेपाल, और भूटान) के 45 लाख लोग रह पा रहे हैं | ब्लैक लोगों ने जेल में वक़्त काटा, पुलिस से मार खायी, और जान भी दी, सब उन्हीं अधिकारों के लिए जिनका अनुभव हम आज कर रहे हैं |
शहरों में लूट-मार, तोड़-फोड़, और दंगों की वजह से आपका डर और आपकी चिंता को हम समझ सकते हैं | लेकिन आप विरोध की ताक़त जानते हैं | जब अंग्रेजों ने हिंदुस्तान आ कर, हमारा काम और जान लूटा, हमने बिना हार माने विरोधों के बल पे ही उन से आज़ादी पायी |
अगर आपको उसी हिंसा के खिलाफ लड़ना पड़े जिस-से आपके पुरख लड़े, और वह भी उसी देश में जो आपकी मज़दूरी के बलबूते खड़ा है, तो क्या आप नहीं थकेंगे? सोचिये, अगर आपकी ज़िंदगी से ज़्यादा अहमियत दुकानों और खिड़कियों को दी जाती, तो क्या आप नहीं गुस्साएंगे ? आपका घाव इतना गहरा होता, तो कोरोनावाइरस के बीच में क्या आप विरोध करने में मजबूर नहीं होंगे?
इसी वजह से मैं ब्लैक लाइव्स मैटर के पक्ष में हूँ | इस सहयोग में हमारी आवाज़ बहुत ज़रूरी है, खास कर कि जब हमारा समाज -- हमारा परिवार भी -- ब्लैक समाज के अस्तित्व को नीचे उतारता है |
हंसी-मज़ाक के नाम पर हम ...
A reading of the Letters for Black Lives translated into Hindi. Written and edited by the Letters For Black Lives Team. Translated by the #Translation-Hindi Team. Read by Aishwarya Bhadouria.
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आदरणीय परिवार जन और दोस्तों,
हमें आप सब से एक ज़रूरी बात करनी है |
हो सकता है अभी तक ब्लैक लोग आपके दोस्त या साथी न रहे हों, इसलिए आप उनसे परिचित नहीं हैं, लेकिन हमें ब्लैक लोगों के लिए आज बहुत डर लग रहा है | बचपन से ब्लैक लोग हमारे दोस्त, पड़ोसी, और साथ पढ़ने वाले रहे हैं | इन में से कई लोग रिश्तेदार से कम नहीं है, और हम उनके खिलाफ होने वाले अत्याचारों को और नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते |
तीन हफ्ते पहले, मिनेसोटा में, एक वाइट पुलिस अफ़सर ने जॉर्ज फ्लॉयड (George Floyd) नाम के एक ब्लैक आदमी की जान ले ली | नौ मिनट के लिए, उसने अपने घुटने से जॉर्ज की गर्दन दबा कर उसकी सांस खींच ली | “मैं सांस नहीं ले पा रहा हूँ”, दोहराते-दोहराते जॉर्ज मर गया | मरते वक़्त उसने अपनी माँ को दर्द और पीड़ा-भरी आवाज़ में याद किया, और किसी ने उसकी नहीं सुनी | दो और पुलिस वालों ने फ्लॉयड को कस के पकड़ रखा और एक एशियाई अफ़सर खड़े-खड़े देखता रहा | फ्लॉयड अकेला नहीं है : इसी साल, पुलिस वालों ने इंडिआना के ड्रैसजोन रीड (Dreasjon Reed), फ्लोरिडा के टोनी मक-डेड (Tony McDade), और केंटकी की ब्रीओना टेलर (Breonna Taylor) की भी जानें ले लीं | फरवरी में भी, एक विरत अफ़सर के हाथ बेगुनाह अहमौद आरबेरी (Ahmaud Arbery) की जॉर्जिया में हत्या हुई |
बार बार, नाइंसाफी की जीत हो रही है | सबूत और गवाह होने के बावजूद, ब्लैक लोगों को मारने वाले पुलिस-अफसरों को सज़ा नहीं मिलती, चाहे समाचार में कितनी भी खबर क्यों न मिले | ये ऐसी घटनाएँ हैं जिन्हें हम समाचार पर देख पाए है; सोचिये और कितनी ऐसी घटनाएँ होंगी जो अनदेखी और अनसुनी रह गयी होंगी |
यह हमारे ब्लैक भाइयों, बहनों, और दोस्तों की एक भयानक सच्चाई है, जिस के साथ वे रोज़ जीते हैं; और इसी लिए, आज हमारा बात करना ज़रूरी है |
हम अक्सर यह सोचते हैं कि माइनॉरिटी होते हुए, भेदभाव के बावजूद, हमने भी अमरीका में कामयाबी पायी है, तो वे क्यों नहीं पा सकते? हमें यकीन है की अगर हम सब साथ में काम करें, तो हम समाज की यह गलत फहमी दूर कर सकते हैं | हमको वाइट होने की सुविधा भले न हो, लेकिन हमको ब्लैक न होने का फायदा ज़रूर मिलता है | आम तौर पर, लोग हमें खतरा नहीं समझते | अगर पुलिस हमें सड़क पर रोक भी ले, तो कम-से-कम हमें मरने का डर तो नहीं लगता | हमारे ब्लैक दोस्त इसी डर के साथ रोज़ जीते हैं |
सदियों पहले, ब्लैक लोग अपनी इच्छाओं के खिलाफ, यहाँ ग़ुलामी के लिए लाये गए थे | तब से, वाइट लोगों ने अपने फायदे के लिए उनके समाज, परिवार, और शरीर का इस्तेमाल किया | ग़ुलामी के ख़त्म होने के बाद भी, usa.org/black-history-month/a-brief-history-of-jim-crow">सरकार ने उनको अपनी ज़िंदगी बनाने का हक़ नहीं दिया | वे चुनावों में हिस्सा नहीं ले पाए, पढ़ाई नहीं कर सके, और घर खरीदना भी उनके लिए मना था | आज के ज़माने में भी ऐसी कड़वी सच्चाइयाँ इनकी ज़िंदगी में मौजूद हैं! आज भी पुलिस और अमरीका के कैद-खाने ऐसी बेइंसाफ़ियों को लगातार जारी रखते हैं, जो सदियों पहले हाकिम ग़ुलामों पर रखते थे | उनके ज़ुल्म ख़त्म नहीं हुए; बस उनके ज़ुल्मों का रूप बदला है |
यह सच है कि अमरीका में हम भी भेदभाव और बेरहमी के शिकार रह चुके हैं | आपको शायद 9/11 के बाद वाले हादसे याद होंगे, जब हम जैसे लोगों पर आतंकवादी होने का आरोप लगाया गया था | तब से, हवाई अड्डे और आप्रवासी के अफ़सर हमारे भाई-बहनों को Our-Own-Words-Narratives-of-South-Asian-New-Yorkers-Affected-by-Racial-and-Religious-Profiling.pdf">परेशान भी करते आ रहे हैं और गिरफ्तार भी | 9/11 को हुए 20 साल होने वाले हैं और आज भी हम नफ़रत के शिकार हैं | हमारे मंदिर, मस्जिद, और गुरुद्वारे निगरानी, गुंडा-गिरी और गोलियों के भी निशाने बन चुके हैं | दरअसल यह हिंसा नयी नहीं है | सौ साल पहले, अंग्रेज़ों से बचने के लिए जब हिंदुस्तान से लोग कैलिफ़ोर्निया और वाशिंगटन आये, तब भी उन्होंने पुलिस और दंगों का सामना किया | इन में से कुछ लोगों ने भारत की स्वतंत्रता के लिए इस देश में भी अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ाई जारी रखी, जिस में ब्लैक लोगों ने उनका हाथ थामा | 20 साल बाद, उन्ही-की सिविल राइट्स (Civil Rights) की लड़ाई की बदौलत, अमरीका के अन्यायी क़ानूनों का नाश हुआ | आज उन्हीं की मदद के कारण, इस देश में दक्षिण एशिया (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्री लंका, नेपाल, और भूटान) के 45 लाख लोग रह पा रहे हैं | ब्लैक लोगों ने जेल में वक़्त काटा, पुलिस से मार खायी, और जान भी दी, सब उन्हीं अधिकारों के लिए जिनका अनुभव हम आज कर रहे हैं |
शहरों में लूट-मार, तोड़-फोड़, और दंगों की वजह से आपका डर और आपकी चिंता को हम समझ सकते हैं | लेकिन आप विरोध की ताक़त जानते हैं | जब अंग्रेजों ने हिंदुस्तान आ कर, हमारा काम और जान लूटा, हमने बिना हार माने विरोधों के बल पे ही उन से आज़ादी पायी |
अगर आपको उसी हिंसा के खिलाफ लड़ना पड़े जिस-से आपके पुरख लड़े, और वह भी उसी देश में जो आपकी मज़दूरी के बलबूते खड़ा है, तो क्या आप नहीं थकेंगे? सोचिये, अगर आपकी ज़िंदगी से ज़्यादा अहमियत दुकानों और खिड़कियों को दी जाती, तो क्या आप नहीं गुस्साएंगे ? आपका घाव इतना गहरा होता, तो कोरोनावाइरस के बीच में क्या आप विरोध करने में मजबूर नहीं होंगे?
इसी वजह से मैं ब्लैक लाइव्स मैटर के पक्ष में हूँ | इस सहयोग में हमारी आवाज़ बहुत ज़रूरी है, खास कर कि जब हमारा समाज -- हमारा परिवार भी -- ब्लैक समाज के अस्तित्व को नीचे उतारता है |
हंसी-मज़ाक के नाम पर हम ...
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